दोस्तों स्वागत है आपके एक और लेख में जिसमे में आपको बताने वाला हूँ kabir das ka jivan parichay के बारे में। दोस्तों जैसा की हम सब जानते है की कबीर दस जी हिंदी भाषा के महान और सुप्रसिद्ध कवि कवि थे। कबीर दस जी ने अपने जीवन में अपनी कला शैली से अनेक प्रकार की कृतियां लिखी। इसके अलाबा कबीर दास जी बहुत प्रसिद्ध दोहे लिखे है जिसको लोग आज भी Kabir Das ke Dohe नाम से जानते है यह दोहे आज भी पड़े और सुने जाते है। दोस्तों जैसा की हम सब जानते है की जब हम 9बी और 10बी कक्षा में थे तब हम सब ने जरूर ही कबीर दास का जीवन परिचय पढ़ा होगा। जिसमे बताया जाता था की कबीर दस जी ने कभी भी जाति, धर्म, ऊंच-नीच भेदभाव जैसी चीज़ो को कभी भी मान्यता नहीं दी। वो हमेशा से ही इस तरह की समस्या को दूर करना चाहते थे वो हमेशा से चाहते थे की जाति, धर्म, ऊंच-नीच भेदभाव जैसी चीज़ो को ख़त्म किया जाये। Kabir Das Ji ने इस समस्या को लेकर अनेक कृतियां भी लिखी है।
दोस्तों कबीर दास अपने समय के और आज के समय के प्रेरणादायक कवि थे। जब कोई इनकी लिखी कविता को पड़ते है तो इनकी कविता मन और आत्मा को छू जाती है। कबीर दास के जीवन परिचय के बारे में अनेक-अनेक तरह की बाते कही जाती है तो दोस्तों आज इस लेख में बात kabir das ka jivan parichay के करे में। जीवनी जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पड़े।
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Kabir Das Ji Ka Jivan Parichay
दोस्तों अब बात करते है की कबीर दास जी जीवन परिचय के बारे में। कबीर दास जी के जीवन परिचय के बारे अनेक अनेक तरह की बाते की जाती है बैसे इनका जन्म सन 1398 ईसवी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था। कुछ लोग का मानना है की कबीर दास जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे और बह विधवा ब्राह्मणी उस नबजात शिशु को लहरतारा तालाब के पास छोड़ गयी थी। उसी लहरतारा तालाब के पास निरु और नीमा नाम के दो दम्पति रहते थे। ऐसा बताया जाता है की ये दम्पति निसंतान थे। इन्होने लहरतारा तालाब के किनारे एक बच्चे की रोने की आवाज़ सुनी तो बह तालाब की तरफ दौड़कर गयी और बहा बच्चे को देखा। इस बच्चे को वो अपने घर ले आये और उस बालक का अच्छे से पालन पोषण किया।
बाद के बही बच्चा बड़े होकर कबीर दास बना। कुछ लोग कहते है की कबीर दास जन्म से मुसलमान थे। और बचपन में ही उन्हें रामानंद स्वामी जी से प्रभाव से हिंदू धर्म के बारे में पता चला। कबीर दास रामानंद स्वामी को अपना गुरु मानते थे। रामानंद स्वामी पंचगंगा घाट पर रोजाना नहाते थे। एक बार कबीर दास पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर पड़े थे और बही से रामानंद स्वामी स्नान करने के लिए जा रहे थे तब रामानंद स्वामी का पैर कबीर दास के शरीर पर लग गया था और तभी रामानंद स्वामी के मुँह से राम शब्द निकल पड़ा और तभी से Kabir Das Ji ने उसी राम शब्द को दीक्षा-मंत्र मान लिया और रामानंद स्वामी को अपना गुरु मान लिया
अगर बात करे इनके विवाह के बारे में तो इनका विवाह लोई नाम की महिला से हुआ था लोई नाम की महिला से इन्हे कमाल और कमाली नाम के पुत्र एवं पुत्री पैदा हुए थे। अपने जीवन के आखिरी समय में बह मगहर चले गए थे और वर्ष 1518 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
कबीर दास का जन्म स्थान
कबीर दास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी में हुआ था उन्होंने अपनी रचना के भी बहा का उल्लेख किया है – “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि काशी बसे आई” . वाराणसी के पास में एक मगहर नाम की एक जगह है जहा पर कबीर दास जी का मकबरा भी है।
कबीर दास की शिक्षा
जब कबीर दास छोटे थे तब उनके लगा की में ज्यादा पड़ा लिखा नहीं हूँ। कबीर दास जी पड़ना चाहते थे लेकिन उनके पिता की आर्थिक स्तिथि सही नहीं होने के कारण बह नहीं पढ़ पाए थे। ज्यादा पड़े लिखे न होने के कारण भी कबूर दास जी का ज्ञान बहुत उच्च स्तर का था उन्होंने साधू संतो और फकीरो के साथ रहकर काफी चीज़ो का ज्ञान प्राप्त किया था।
मसि कागद छुवो नहीं, कमल गही नहिं हाथ
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।
कबीरदास के गुरु
कबीर दास जी बचपन से ही महात्मा रामानंद को अपना गुरु मानते थे लेकिन महात्मा रामानंद ने कबीर दास को नीची जाति का समझकर अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था जिसके कारण उन्हें बहुत बुरा लगा। तब कबीर एक दिन पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट करे थे। महात्मा रामानंद रोजाना पंचगंगा घाट पर स्नान करने के लिए जाती थे एक दिन बह सुबह सुबह अँधेरे में स्नान के लिए जा रहे थे और बही पर कबीर दास जी लेते थे तभी महात्मा रामानंद का पैर कबीर दास के शरीर पर रख गया था तभी उनके मुख से राम राम निकला और तभी से कबीर ने महात्मा रामानंद को अपना गुरु मान लिया था। बैसे कुछ लोग प्रसिद्ध सूफी फकीर शेखतकी को कबीर दास जी का गुरु मानते है।
कबीर दास का वैवाहिक जीवन
कबीर दास जी का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था और उनके दो बच्चे कमाल और कमाली नाम के पुत्र एवं पुत्री पैदा हुए थे। लेकिन कबीर पंथ में उन्होंने बाल ब्रह्मचारी माना जाता है। कबीर पंथ अनुशार कमाल उनका शिष्य और कमाली और लोई उनकी शिष्या थी। लेकिन दोस्तों ऐसा हो सकता है लोई पहले कबीर दास की शिष्या हो और बाद में उन्होंने लोई से विवाह कर लिया हो या ऐसा हो सकता है की पहले लोई से उनका विवाह हुआ हो और बाद में अपना शिष्या बना लिया हो।
कहत कबीर सुनो रे भाई हरि बिन राखल हार न कोई।
कबीर दास का कला पक्ष
कबीर दास साधु संतों के साथ रहते थे जिसके कारण जिहोने हिंदी भाषा की भाषा में भोजपुरी, ब्रज, फ़ारसी, पंजाबी तथा खड़ी बोली के सब्दो का प्रयोग किया गया है। इसीलिए कबीर दास की भाषा को धुक्कड़ी तथा पंचमेल खिचड़ी कहा जाता है। इन्होने अपनी काव्य शैली का उपयोग हुआ और श्रंगार, शांत तथा हास्य रस का भी उपयोग मिलता है।
साहित्यिक परिचय
कबीर दास जी संत और समाजसुधारक थे इसीलिए उनको संत कबीर दास (Sant Kabir Das) भी कहा जाता है। कबीर दास जी बचपन से ही जाति, धर्म, ऊंच-नीच को नहीं मानते थे वो इस समस्या को हमेशा से ही दूर करना करना चाहते थे। इस लिए उन्होंने अपनी कविताओं में पाखंडीयों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग करने वालो को ललकारा है और उनकी पॉल खोल कर रख दी है।
कबीर दास की मृत्यु कब हुई
कबीर दास जी ने अपनी जीवन की आखिरी सास काशी के निकट मगहर जगह पर ली थी। इनकी मृत्यु तिथि को लेकर भी काफी मतभेद है कुछ लोग मानते है की इनकी मृत्यु तिथि सन 1518 ई० है लेकिन कुछ इतिहासकार इनकी मृत्यु तिथि 1448 ई० मानते है। ऐसा माना जाता है की जब इनकी मृत्यु हुई थी तब हिन्दू और मुस्लिम में बिबाद हो गया था क्योकि हिन्दू धर्म के लोग इनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीती-रिबाज से करना चाहते है और मुस्लिम इनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से करना चाहते थे। फिर बाद में इस बिबाद के चलते उनके शव से चादर हट गयी तो लोगो ने देखा है की बहा पर फूलो का ढेर लगा हुआ है। फिर बाद में इन फूलो का लोगो में अपने धर्म के रीति-रिबाज अंतिम संस्कार किया।
कबीर दास का जीवन परिचय 100 शब्दों में
कबीर दास जी का जन्म 1398 ईसवी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लहरतारा नामक जगह पर हुआ था। ऐसा माना जाता है की कबीर दास जी जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे। जन्म के बाद बह ब्राह्मणी उस बच्चे को एक तालाब के किनारे छोड़ गयी थी। जब बह बच्चा ताल के किनारे पर पड़ा रो रहा था तब उसके रोने की आवाज निरु और नीमा नाम के दम्पति कानो तक पहुंची और बह दौड़कर तालाब की तरफ गए तो बहा पर एक बच्चा पड़ा था। ये दम्पति उस बच्चे को अपने घर ले गए अच्छे से बच्चे को पाला और फिर बड़े होकर बही बच्चा कबीर दास बना। कबीर दास रामानंद स्वामी जी को अपना गुरु मानते थे। कबीर दास घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी न होने के कारण किताबी ज्ञान नहीं ले पाए थे। लेकिन उन्होंने संतो और फकीरो के साथ रहकर ज्ञान अर्जित किया। इन्होने अपने जीवन में बहुत से ग्रन्थ, कविताये, दोहे आदि चीज़े लिखी। इनके दोहे आज भी पड़े जाते है। Kabir Das की मृत्यु 1518 ई० में काशी के निकट मगहर में हो गयी। कबीर दास पर एस्से
10 line Essay on Kabir Das
- कबीर दास का जन्म 1398 ईसवी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लहरतारा नामक जगह पर हुआ था
- कबीर दास जी जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे
- इनका पालन-पोषण निरु और नीमा दम्पति ने किया था
- कबीर दास का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था
- कबीर दास की दो संताने थी जिनमे पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली था
- कबीर दास रामानंद स्वामी जी को अपना गुरु मानते थे
- कबीर दास जी हिंदी साहित्य के निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे।
- कबीर दास की दोहे बहुत की प्रसिद्ध है
- इन्होने कबीर बीजक, सुखनिधन, होली अगम, शब्द, वसंत, साखी और रक्त आदि प्रसिद्ध रचनाओं लिखी थी
- इनकी मृत्यु 518 ई० में काशी के निकट मगहर नमक स्थान पर हुई थी
कबीर दास जी कविताये
- केहि समुझावौ सब जग अन्धा
- काहे री नलिनी तू कुमिलानी
- मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै
- रहना नहिं देस बिराना है
- कबीर की साखियाँ
- हमन है इश्क मस्ताना
- कबीर के पद
- नीति के दोहे
- मोको कहां
- साधो, देखो जग बौराना
- तेरा मेरा मनुवां
- बहुरि नहिं आवना या देस
- बीत गये दिन भजन बिना रे
- नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- भेष का अंग
- साध का अंग
- मधि का अंग
- बेसास का अंग
- सूरातन का अंग
- करम गति टारै नाहिं टरी
- भजो रे भैया राम गोविंद हरी
- दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ
- झीनी झीनी बीनी चदरिया
- साधो ये मुरदों का गांव
- मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा
- निरंजन धन तुम्हरा दरबार
- ऋतु फागुन नियरानी हो
- कथनी-करणी का अंग
- सांच का अंग
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- साध-असाध का अंग
- संगति का अंग
- मन का अंग
- कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
- मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया
- अंखियां तो छाई परी
- माया महा ठगनी हम जानी
कबीर दास के दोहे
मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह।
ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह॥
झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।
माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह॥
मानुष जन्म दुलभ है, देह न बारम्बार।
तरवर थे फल झड़ी पड्या,बहुरि न लागे डारि॥
जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।
ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ॥
कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ॥
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।
आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ॥
नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।
ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ॥
मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ॥
Kabir Das Short Biography in Hindi
Article Name | Kabir Das Ka Jivan Parichay |
Birth Date | 1398 |
Birth Place | Lahartara Taal Kaashi (U.P) |
Mother’s Name | Neema |
Father’s Name | Niru |
Guru | Shri Ramand Swami |
Son’s Name | Kamaal |
Daughter’s Name | Kamaali |
Death | 1518 |
कबीर दास से सम्बंधित पूछे जाने वाले सवाल:
Q1. कबीर के गुरु का नाम क्या था?
कबीर दास जी श्री रामानंद स्वामी को अपना गुरु मानते थे।
Q2. कबीर दास का पालन पोषण किसने किया था?
कबीर दास का पालन पोषण निरु और नीमा दम्पति ने किया था
Q3. कबीर दास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
इनका जन्म 1398 में उत्तर प्रदेश में काशी के निकट लहरतारा नमक स्थान पर हुआ था
Q4. कबीर के गुरु का नाम क्या था?
कबीर दास जी का पूर्ण नाम संत कबीर दास था।